आईयूआई (IUI) क्या है – प्रक्रिया और उपचार

आई यू आई का मतलब होता है इंट्रा यूटेराईन इन्सेमिनेशन । यह एक ऐसी तकनीक है जिससे की निसंतान दम्पतियों को संतान प्राप्त करवाई जा सकती है । IUI को कृत्रिम गर्भधारण के नाम से भी जाना जाता है, कृत्रिम गर्भधारण (IUI) की सहायता से गर्भवती होने की सम्भावना बढ़ जाती है । इस प्रक्रिया में निषेचन (fertilization) को बढ़ावा देने के लिए पुरुष के शुक्राणु को सीधा महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है । इस प्रक्रिया से स्वस्थ शुक्राणुओं की संख्या है को बढ़ावा दिया जाता है जो के फॉलोपियन ट्यूब तक पहुंचता है ।
आई यू आई में अच्छे शुक्राणुओं को अलग करने के लिए एक प्रयोगशाला में एक प्रक्रिया की जाती है । एक छोटे ट्यूब की सहायता से अच्छे शुक्राणुओं को सीधे ओवुलेशन (ovulation) के समय जब अंडाशय से अंडा निकलता है तब गर्भाशय में रखा जाता है । यह एक दर्द रहित प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया को 5 से 7 मिनट लगते है । इस प्रक्रिया को ३ से ४ बार दोहराया जा सकता है ।
आई यू आई आई वी एफ के मुकाबले एक छोटी तथा सस्ती प्रक्रिया है ।

IUI Treatment

आई यू आई की प्रक्रिया (IUI Process)

आई यू आई की प्रक्रिया में निम्न लिखे हुए पॉइंट्स शामिल है ।

1. महिला को अल्ट्रासाउंड और दवाओं के बारे में बताने के लिए मासिक धर्म (menstrual cycle ) के दूसरे या तीसरे दिन अस्पताल में बुलाया जाता है ।
2. महिला को मासिक धर्म (menstrual cycle) के दौरान दवाएं शुरू करने के लिए कहा जाता है ।
3. फिर एक सप्ताह के बाद महिला को फिर से अल्ट्रासाउंड के लिए बुलाया जाता है ।
4. महिला के अल्ट्रासाउंड के द्वारा फॉलिक्युलर स्टडी से यह पता चलता है के महिला के अंडे बन रहे है या नहीं ।
5. इसके बाद पुरुष से स्पर्म का सैंपल लेकर लैब में लेजा कर उसे तैयार किया जाता है जिसमे से अच्छे शुक्राणुओं को अलग कर दिया जाता है और उन्हें एक लम्बी और पतली ट्यूब के उपयोग से गर्भाशय में डाल दिया जाता है ।
6. महिला को 10 से 15 मिनट तक टेबल पर आराम करने के लिए बोला जाता है ।
7. इस प्रक्रिया के दौरान हलके से ऐठन का अनुभव होता है ।
8. महिला को दो सप्ताह बाद प्रेगनेंसी टेस्ट करवाने के लिए बोला जाता है ।

आई यू आई का उपचार (IUI Treatment)

आई यू आई के लिए महिला को तैयार करने के लिए और इसको पूरी तरह से सफल बनाने के लिए कई तरीकों से की जाती है जो के निम्नलिखित है ।

1. सैंपल को तैयार करना: इस प्रक्रिया में पुरुष सबसे पहले अस्पताल में जा कर अपना स्पर्म देता है । इसके बाद इस स्पर्म को धोया जाता है और अशुद्धि को अलग कर दिया जाता है । यदि शुक्राणुओं में कुछ गैर स्पर्म चीज़े है तो इसको अलग करना काफी जरूरी होता है और अगर इसे साफ़ न किया जाये तो यह महिला के आंतरिक शरीर में रिएक्शन कर सकता है । इसलिए इसे ऐसे साफ़ करा जाता है जिससे की सारी अशुद्धियाँ दूर हो जाये ।

2. ओवुलेशन पर ध्यान देना : इस प्रक्रिया में ओवुलेशन टाइम को ट्रैक करना और सही समय पर अंदर डालना बहुत जरूरी होता है । ओवुलेशन को ट्रैक करने के लिए डॉक्टर आपको एक ओवुलेशन प्रेडिक्टर किट दे सकते है जिससे हमे ल्युटानाइज़िंग होर्मोनेस के बड़े हुए स्तर का पता लग सकता है । डॉक्टर इमेजिंग टेस्ट भी कर सकते है जिससे अंडे की ग्रोथ को चेक किया जा सकता है । अगर अंडे का उत्पादन कम हो तो उसके उत्पादन के लिए डॉक्टर एच सी जी का इंजेक्शन भी देते है । इस प्रक्रिया के बाद महिला को जाँच के लिए अस्पताल बुलाया जाता है और कभी कभी अल्ट्रासाउंड भी करवाई जाती है ।

3. सही समय का चयन करना : IUI की ज्यादातर प्रक्रियाएँ ओवुलेशन का पता लगने के एक या दो दिन बाद से शुरू की जाती है । डॉक्टर इनसामिनेशन के लिए सही टाइम और दिन बताते है ।

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